Every person's journey begins with what the eye sees
To make life beautiful,
a child has to first give a beautiful environment,
which we will give according to our own understanding,
from which the journey of life begins.
I noticed that as a relationship, friends go to all religious places, but the beautiful beauty never appeared in anyone, neither in thinking nor in behavior - it was my sight that tied my feet and I never Religion could not be adopted. When I started looking at myself, then I realized that it is necessary to believe in yourself before I believe anything; So it is important to see everything before sure.
After that I got to deal with religious people, who used to show righteousness in debate. But there was no such thing seen anywhere in life, seeing whom one would like to be religious just like them. Not only saw Hindus, Sikhs, Muslims, Christians, they also saw an atheist; Those who never lost in debate, but looking at my face, I understood that all these arrows are moving in the dark, they have nothing to do with light; So I first thought of crossing myself over that bridge, which would make my life better, rather than teaching me logic. So my journey turned to religious texts; Whether it is the Bible or the Gita, or the Quran, or the Puranas.
Religious Text:
When I read religious texts, all of them started to look the same to me, I had read Guru Granth since childhood. As soon as I read the texts, I started getting bored. If I chant anyone, whether it is Oum, Allah is, Waheguru; To my surprise, my existence used to run away from all these names. I used to feel that no sound of the world should fall in my ears. My ears refused to listen to every voice, be it social or religious: the voice only got away. Once when I chanted Waheguru for 2 months continuously, then I was surprised that if I had the word Waheguru in my throat, my throat would start hurting. Words cause pain, there was no other way than silence for me. So life gave me the refuge of nature. When I got natural nature started understanding life. When my journey started with nature, Osho was the first chapter of my journey. When I looked at Osho from nature, Osho was the first person who appeared religious to me. Then my look looked at an understanding. I saw that the world, be it society, God or religion, they are all chapters of life, who teach a person 'What is a person?' It gives the person identity of one-self. When the identity of one-self was made, the dimension of humanity started. Now this dimension itself has to produce the Mahatma - Dharmatma, Sadhu, Fakir, Scholar, Saint and Paigmber. Then I recognized that there is only one knowledge, which has been designed to give understanding. Which is the eternal unity of all life,
it has only this connection with this creation.
That eternal unity is what we call consciousness.
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आँख क्या देखती है, इस से ही हर व्यक्ति की यात्रा शुरू होती है
जीवन को सुन्दर बनाने के लिए
एक बच्चे को सब से पहले सुन्दर वातावरण देना पड़ेगा,
जो हम खुद की समझ के अनुसार ही देंगे,
जिस से जीवन-यात्रा शुरू होती है
मैंने देखा कि रिश्ते नाते, दोस्त सब के सब धार्मिक स्थानों पर जाते हैं, पर गहरा सुन्दर एहसास किसी में भी कभी दिखाई नहीं दिया, न ही सोच में और न ही व्यहार में- यह मेरी देखनी ने मेरे पैरों को बांध दिया और मैं कभी किसी धर्म को अपना न सकी।जब मैंने खुद को देखना शुरू किया, तब यह समझ आ गई कि किसी भी चीज़ पर यकीन करने से पहले खुद पर यकीन होना ज़रूरी है; सो यकीन से पहले हर चीज़ को देखना ज़रूरी है।
उस के बाद मेरा वास्ता धार्मिक लोगों से पड़ा, जो बहसबाज़ी में ही धार्मिकता दिखाते थे। पर ज़िंदगी में कहीं भी ऐसी कोई हरकत दिखाई नहीं देती थी, जिस को देख कर उन की तरह ही धार्मिक होने को दिल करे। हिन्दू, सिख, मुस्लिम, ईसाई को ही नहीं देखा, एक नास्तिक को भी देखा ; जो बहस-बाज़ी में कभी हारते नहीं थे, पर मेरी देखनी उन के चेहरे को देख कर समझ गई कि यह सब तीर अँधेरे में ही चल रहें हैं, इन का वास्ता कोई रौशनी से नहीं; सो मैंने पहले खुद उस पुल के ऊपर से पार होने की सोची, जो मेरे जीवन को बेहतर बनाये, न कि मेरे को तर्क-बाजी सिखाये।
सो मेरी यात्रा धार्मिक ग्रंथों की हो गई; चाहे बाइबिल ही या गीता, या क़ुरान हो या पुराण।
धार्मिक ग्रन्थ:
जब धार्मिक ग्रंथों को पढ़ा तो सब के सब मेरे को एक जैसे ही दिखाई देने लगे, मैंने बचपन से गुरु ग्रन्थ पढ़ा था। ग्रंथों को पढ़ते पढ़ते ही मेरे में ऊब आने लगी। अगर मैंने किसी का भी जाप करना, चाहे ओउम है, अल्लाह है, वाहेगुरु है ; मेरे लिए हैरानी थी कि मेरा वजूद इन सब नाम से दूर भागता था। मेरा दिल करता था कि संसार की कोई भी आवाज़ मेरे कानों में न पड़े। मेरे कानों ने हर आवाज़ को सुनने से इंकार कर दिया , समाजिक हो या धार्मिक: आवाज़ से दूर ही होती गई। एक बार जब मैंने वाहेगुरु का जाप २ महीने लगातार किया , तो मैं फिर हैरान कि अगर मेरे गले में वाहेगुरु शब्द भी आता तो मेरा गला दर्द करने लगता। शब्द भी दर्द का कारण बन जातें हैं, मेरे लिए खामोशी के इलावा और कोई राह नहीं थी। तो मेरे को ज़िंदगी ने कुदरत की शरण दे दी।जब कुदरत मिली तो जीवन की समझ आने लगी। जब मेरी यात्रा कुदरत के साथ शुरू हुई तो 'ओशो' मेरी इस यात्रा का पहला चैप्टर था। कुदरत में से जब मैंने ओशो की ओर देखा तो ओशो पहले इंसान थे, जो मेरे को धार्मिक दिखाई दिए। तब मेरी देखनी ने एक समझ को ओर देखा।मैंने देखा कि संसार को, समाज हो, रब्ब हो या धर्म हो; यह सब ज़िंदगी के चैप्टर हैं, जो व्यक्ति को सीख देतें हैं कि
'व्यक्ति है क्या ?' यह व्यक्ति को खुद की पहचान देती है।
जब खुद की पहचान हो गई तो इंसानियत का आयाम शुरू हो गया। अब इस आयाम ने ही महात्मा- धर्मात्मा, साधु, फ़क़ीर, विद्वान को पैदा करना है । तब मैंने पहचान लिया कि ज्ञान सिर्फ एक ही है, जिस की समझ देने के लिए यह सब रचना को रच्या गया है। जो इस तमाम जीवन की शाश्वत एकता है,
उस का इस रचना के साथ सिर्फ यही नाता है।
उस शाश्वत एकता को ही हम चेतना कहतें हैं।